गीता अध्याय 16 श्लोक 23 - Axtarish в Google
जो पुरुष शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को ही ।।23।। Having cast aside the injunctions of the scriptures, ...
BG 16.23: वे जो इच्छाओं के आवेग के अंतर्गत कर्म करते हैं और शास्त्रों के विधि-निषेधों को ठुकराते हैं वे न तो पूर्णताः प्राप्त करते हैं और न ही जीवन में परम लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं।
हिन्दी: मन, वाणी और शरीरसे किसी प्रकार भी किसीको कष्ट न देना सत्यवादी अपना अपकार करनेवालेपर भी क्रोधका न होना परमात्मा के लिए सिर भी सौंप दे अन्तःकरणकी उपरति अर्थात् चितकी चंचलताका अभाव निन्दादि न करना प्राणियोंमें दया निर्विकार ...
न, सः, सिद्धिम्, अवाप्नोति, न, सुखम्, न, पराम्, गतिम्।।23।। अनुवाद: (यः) जो पुरुष (शास्त्राविधिम्) शास्त्राविधिको (उत्सृज्य) त्यागकर (कामकारतः) अपनी इच्छासे मनमाना (वर्तते) आचरण करता ...
भगवद गीता अध्याय: 16 श्लोक 23 यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः। न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्‌॥ भावार्थ:जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न ...
24 нояб. 2022 г. · गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार जो व्यक्ति शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण (पूजा) करते हैं वह न तो सुख प्राप्त करते हैं, न उनका कोई कार्य सिद्ध होता है तथा न ही परमगति को ...
4 апр. 2020 г. · जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है और मनमाने ढंग से कार्य करता है, उसे न तो सिद्धि, न सुख, न ही परम गति की प्राप्ति हो पाती है । अध्याय 16 : दैवी और आसुरी स्वभाव. श्लोक 16.23
17 дек. 2023 г. · #गीता_तेरा_ज्ञान_अमृत गीता अध्याय 16, श्लोक 23 यः शास्त्र-विधिम उत्सृज्य वर्तते काम-कर्ताः न स सिद्धिं अवाप्नोति न सुखं न परम गतिम् गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि शास्त्र विधि को त्यागकर जो साधक ...
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