(iii) वाचिक. काव्य में नायक अथवा नायिका द्वारा भाव- दशा के कारण वचन में. आए परिवर्तन को वाचिक अनुभाव कहते हैं। (iv) आहार्य. नायक-नायिका की वेशभूषा द्वारा भाव प्रदर्शन आहार्य अनुभाव. कहलाते हैं। |
3 янв. 2024 г. · जब विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के संयोग से रति स्थायी भाव आस्वाद्य हो जाता है, तो उसे शृंगार रस कहते है। इसमें सुख व दुःख दोनों प्रकार की अनुभूतियां होती है। ... शृंगार का आलंबन विभाव नायक-नायिका या प्रेमी-प्रेमिका हैं ... |
रस के रूप में जिसकी निष्पत्ति होती है, वह भाव ही है। जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता। केवल रस रहता है। उसकी भावता अपना रूपांतर कर लेती है। रस अपूर्व की उत्पत्ति है। नाट्य की प्रस्तुति में सब कुछ पहले से दिया रहता है, ... |
2 июн. 2022 г. · कायिक - शरीर संबंधी चेष्टाएँ। · वाचिक - स्वर के माध्यम से उत्पन्न होने वाला अनुभाव। · आहार्य - वेशभूषा,आभूषण,सज-सज्जा आदि। · सात्विक(मानसिक) - सत्व से उत्पन्न आंगिक चेष्टाएँ। |
6 мая 2021 г. · ... चेष्टाएं 'अनुभाव' कहलाती हैं। अनु का अर्थ है, पिछे, अर्थात् जो स्थायीभावों के पीछे (बाद में) उत्पन्न होते हैं वे अनुभाव हैं। अथवा अनुभावयन्ति इति अनुभाव अर्थात् जो उत्पन्न स्थायीभावों का अनुभव कराते हैं, वे अनुभाव हैं। |
व्यभिचारी भाव वाचिक, आंगिक एवं सात्त्विक अभिनयों से रस की प्रतीति कराते हैं । इस प्रकार व्यभिचारी रस के साथ अभिव्यक्त होते हैं, रस के साथ संचरणशील होते हैं. तथा रस की अभिव्यक्ति की प्रतीति ... |
अनुभाव. संपादित करें. जिसका उद्भव वाक्य और अंगाभिनय से होता हैं, उसे अनुभाव कहते हैं। यह विभाव का परिणामी है। यह एक व्यक्ति द्वारा महसूस अभिव्यक्ति भावनात्मक भावनाएं हैं। विभाव के तीन अंग होते हैं कायिक, वाचिक एवम मानसिक। |
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद' ।काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है। रस को 'काव्य की आत्मा/ प्राण तत्व' माना जाता है। आचार्यों ने अपने-अपने ढंग के 'रस' को परिभाषा की परिधि में रखने ... |
भामह ने रसवद् अलंकार में श्रृंगार का एक अपुष्ट. उदाहरण ... भू-निक्षेप अंगिक अनुभाव है, मधुर और प्रिय बोलना वाचिक अनुभाव है, विभिन्न. |
(2) हास्य रस ... विकृत वेशभूषा, क्रियाकलाप, चेष्टा या वाणी देख-सुनकर मन में जो विनोदजन्य उल्लास उत्पन्न होता है, उसे हास्य रस कहते हैं। हास्य रस का स्थायी भाव हास है। उदाहरण- ''जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहि न विलोकी भूली ... |
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