सामान्यतः वस्त्राभूषण. आदि से रूप को सुशोभित करने की क्रिया या भाव को शृंगार कहा जाता है। शृंगार एक प्रधान रस भी है जिसकी गणना साहित्य के नौ रसों में से एक के रूप में की जाती है। शृंगार भक्ति का एक भाव भी है, ... |
महाकवि बिहारीलाल का जन्म जन्म 1603 के लगभग ग्वालियर में हुआ। वे जाति के माथुर चौबे थे। उनके पिता का नाम केशवराय था। उनका बचपन बुंदेल खंड में कटा और युवावस्था ससुराल मथुरा में व्यतीत हुई। उनकी कविता व दोहों का मुख्य विषय ... |
श्रृंगार रस की चुनिंदा कविताएं · पर आँखें नहीं भरीं / शिवमंगल सिंह 'सुमन'. कितनी बार तुम्हें देखा पर आँखें नहीं भरीं। सीमित उर में चिर-असीम सौंदर्य समा न सका बीन-मुग्ध बेसुध-कुरंग मन रोके नहीं रुका · तुम आयीं / केदारनाथ सिंह. तुम आयीं जैसे ... |
1 февр. 2013 г. · संयोग श्रृंगार / मलिक मुहम्मद जायसी / रामचन्द्र शुक्ल ... पदमावति चाहत ऋतु पाई। गगन सोहावन भूमि सोहाई॥ चमक बीजु, बरसै जल सोना। दादुर मोर सबद सुठि लोना॥ रंगराती पीतम सँग जागी। गरजै गगन चौंकि गर लागी॥ |
परन्तु इस ग्रंथ में प्रधानता केवल श्रृंगार रस की. ही है। बिहारी ने श्रृंगार रस के दोनों पक्षों संयोग पक्ष और वियोग पक्ष का मार्मिक चित्रण. प्रस्तुत किया है। श्रृंगार रस और भक्ति रस के साथ-साथ उन्होंने भाव व्यंजना की अभिव्यक्ति. |
6 дек. 2019 г. · वियोग श्रृंगार तब होता है जब बहुत ही प्रिय वस्तु या व्यक्ति से दूरी हो जाए तब वियोग उत्पन होता है। वियोग श्रृंगार रस भी है इसे नायक नायिका के बिछड़ने के विरह का वर्णन किया जाता है। जब आत्मा को परमात्मा ... |
24 июл. 2019 г. · १.. पढ़ कर पाती प्रीत की , भीग रहे हैं नैन | आखर -आखर बोलते , साजन हैं बेचैन || २… मैं उनकी हो ली सखी , पर वो मेरे नाही | एकतरफा अग्नि प्रेम की , नाहि जाए बुझाहि || |
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