समाज पर दोहे - Axtarish в Google
दोहा छंद लेखन ऐसा कीजिए, दे समाज को सीख। पाठक पढ़कर लेख को,बन जाये निर्भीक।। लक्ष्य दृष्टिगत हो सदा,कर्म करो दिन-रात। मन में हो विश्वास दृढ़,होगा नया प्रभात।। खुद को तूँ पहचान कर, साध लक्ष्य पर तीर।
14 сент. 2019 г. · कबीर साहेब जी के दोहे समाज ही नहीं बल्कि सारी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। कबीर साहेब जी के प्रत्येक दोहे में समाज में फैल रही बुराइयों को जड़ सहित उखाड़ कर फेंक देने की सीख मिलती है एवं कबीर साहेब जी ...
26 янв. 2024 г. · अर्थ- हे साईं, आप मुझे इतना ही दें, कि मेरे परिवार में सबका पेट भर जाए. मुझे भी भूखा नहीं रहना चाहिए और साधु को भूखा न जाना चाहिए। इस दोहे में कबीर दास ने साधुता और सेवा के महत्व को बताया है. वे साधु और ...
जातिवाद पर दोहे. भारतीय समाज के संदर्भ. में कवि कह गया है : 'जाति नहीं जाती!' प्रस्तुत चयन में जाति की विडंबना और जातिवाद के दंश के दर्द को बयान करती कविताएँ संकलित की गई हैं।
दोहे की प्रकृति 'गागर में सागर' भरने की होती है। दिल की जितनी गहराई से उठा भाव दोहे की शक्ल लेता है, उतना ही गहरा होता है उसका घाव। रहीम के दोहों में ये दोनों खूबियाँ हैं। उनमें तेज धार है और ग़जब का पैनापन भी। तभी तो वह दिलो-दिमाग़ ...
19 июн. 2020 г. · कबीर का जन्म जिस समय हुआ उस समय समाज की दशा अत्यंत शोचनीय थी । समाज आडम्बरप्रिय, विलासोन्मुख, अन्धविश्वासी, अनाचारी और स्वेच्छाचारी हो गया था । द्वेष, इर्ष्या, कलह, छल-कपट, दंभ का हर तरफ ...
कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं।
समाज पर कविताएँ · थोड़ी धरती पाऊँ · बुरे समय में नींद · लोकतंत्र का समकालीन प्रमेय · गैंगरेप · कहने और सुनने के लिए · दस के पाँच नोट · नए इलाक़े में/ख़ुशबू रचते हैं हाथ (एन.सी. ई.आ. टी) · क्‍या नामवरों के शहर की यही गति ...
16 февр. 2021 г. · कबीर साहेब जी के दोहे समाज ही नहीं बल्कि सारी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। कबीर साहेब जी के प्रत्येक दोहे में समाज में फैल रही बुराइयों को जड़ सहित उखाड़ कर फेंक देने की सीख मिलती है एवं कबीर साहेब जी ने ...
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