15 авг. 2020 г. · सात्विक अनुभाव : स्वतः यानि अपने आप उत्पन्न होने वाली चेष्टाएं सात्विक अनुभाव कहलाते हैं। ये लगभग आठ होते हैं। जैसे आँसू आना, चेहरे का रंग उड़ जाना, कंपकपाना, पसीना आना, रोंगटे खड़ा हो जाना, ठीक से आवाज ... |
2 июн. 2022 г. · सत्व के योग से उत्पन्न आंगिक चेष्टाएँ। · इसे 'अयत्नज भाव' भी कहते है। · सात्विक अनुभाव की संख्या आठ हैं-. स्तम्भ, स्वेद, रोमांच, स्वर-भंग, कम्प, विवर्णता, अक्षु तथा प्रलय। |
26 сент. 2020 г. · सात्विक अनुभाव वे होते हैं जिनके ऊपर आलंबन का नियन्त्रण नहीं रहता है। इसके आठ प्रकार हैं: 1. स्तम्भ : प्रसन्नता, लज्जा ,व्यथा आदि के कारण शरीर की चेष्टाओं पर विराम होना। 2. स्वेद ... |
6 мая 2021 г. · सात्त्विक अनुभाव आठ माने गये हैं- स्तम्भ, स्वेद, रोमांच, स्वरभंग, वेपथु, वैवणर्य, अश्रु और प्रलय। Download Soln PDF · Share on Whatsapp. |
20 нояб. 2021 г. · आश्रय या पात्र के मनोगत भावों को व्यक्त करने वाली शारीरिक चेष्टाएं अनुभाव कहलाती है। जैसे-चुटकुला सुनकर हँस पड़ना, तालियाँ बजाना आदि चेष्टाएँ अनुभाव हैं। अनुभावों की संख्या 4 कही गई है – सात्विक, कायिक, मानसिक और ... |
ये इतने समर्थ होते हैं कि अन्य भावों को अपने में विलीन कर लेते हैं। ... परंतु, स्थायी भाव के जाग्रत होने पर स्वाभाविक, अकृत्रिम, अयत्नज, अंगविकार को सात्विक अनुभाव कहते हैं। |
चित्त का भावप्रकाश करनेवाला कटाक्ष, रोमांच आदि चेष्टाएँ । विषेश—अनुभाव के चार भेद हैं—सात्विक, कायिक, मानसिक और आहार्य । हाव भी इसी के अंतर्गत माना जाता है । |
आचार्य भरतमुनि ने रस की निष्पत्ति का मुख्य सूत्र इस प्रकार दिया है - "विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः". अर्थात् विभाव (भाव उत्पन्न करने के साधन ), अनुभाव (पात्रों की चेष्टाएँ), व्यभिचारी (अनेकानेक भाव) भावों के संयोग. से रस की ... |
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